आधुनिक युग से पहले: Adhunik Yug Se Pahle
प्राचीन काल से ही यात्राी, व्यापारी, पुजारी और तीर्थत्राी ज्ञान, अवसरों और आध्यात्मिक शांति के लिए या उत्पीड़न या यातनापूर्ण जीवन से बचने के लिए दूर.दूर की यात्राओं पर जाते रहे हैं। अपनी यात्राओं में ये लोग तरह.तरह की चीजें, पैसा, मूल्य.मान्यताएँ और यहाँ तक कि बीमारियाँ भी साथ लेकर चलते रहे है।
3000 ईसा पूर्व में समुद्री तटों पर होने वाले व्यापार के माध्यम से सिंधु घाटी की सभ्यता उस इलाके से भी जुड़ी हुई थी जिसे आज हम पश्चिमी एशिया के नाम से जानते है। हजार साल से भी ज्यादा समय से मालदीव के समुद्र में पाई जाने वाली कौड़ियाँ चीन और पूर्वी अफ्रीका तक पहुँचती रही है।
भारत का वैश्विक सम्पर्क तेरहवीं सदी द्वारा दृढ़ता से जुड़ा हुआ है।
रेशम मार्ग से जुड़ती दुनिया: Resham Marg Se Judti Duniya
- आधुनिक काल से पहले के युग में दुनिया के दूर.दूर स्थित भागों के बीच व्यापारिक और सांस्कृतिक संपर्को का सबसे जीवंत उदाहरण सिल्क मार्गों के रूप में दिखाई देता है।
- जमीन या समुद्र से होकर गुजरने वाले ये रास्ते न केवल एशिया के विशाल क्षेत्रों को एक.दूसरे से जोड़ने का काम करते थे बल्कि एशिया को यूरोप उत्तरी अफ्रीका से भी जोड़ते थे। ऐसे मार्ग ईसा पूर्व के समय में ही सामने आ चुके थे और लगभग पंद्रहवी शताब्दी तक अस्तित्व में थे।
- व्यापार और सांस्कृतिक आदान.प्रदान, दोनों प्रक्रिया साथ.साथ चलती थीं। शुरूआती काल के ईसाई मिशनरी निश्चय ही इसी मार्ग से एशिया में आते होंगे। कुछ सदी बाद मुस्लिम धर्मोपदेशक भी इसी रास्ते से दुनिया में फैले। इससे भी बहुत पहले पूर्वी भारत में उपजा बौद्ध धर्म सिल्क मार्ग की विविध शाखाओं से ही कई दिशाओं में फैल चुका था।
भोजन की यात्रा : स्पैघेत्ती और आलू : Bhojan ki Yatra
- हमारे खाद्य पदार्थ दूर देशों के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान के कई उदाहरण पेश करते हैं। जब भी व्यापारी और मुसाफिर किसी नए देश में जाते थे, जाने अनजाने वहाँ नयी फसलों के बीज बो आते थे। नूडल्स चीन से पश्चिम में पहुँचे और वहाँ उन्हीं से स्पैघेत्ती का जन्म हुआ या सम्भव है कि पास्ता अरब यात्रियों के साथ पाँचवी सदी में सिसली पहुँचा जो अब इटली का ही एक टापू है।
- आलू, सोया, मूँगफली, मक्का, टमाटर, मिर्च, शकरकंद और ऐसे ही बहुत सारे दूसरे खाद्य पदार्थो का अमेरिका से संबंध था, जो क्रिस्टोफर कोलम्बस द्वारा खोजा गया था। ये फसलें साधारणतया उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका एवं कैरीबियन द्वीपसमूह में उगाई जाती हैं।
- कई बार नयी फसलों के आने से जीवन में जमीन.आसमान का फर्क आ जाता है। साधारण से आलू का इस्तेमाल शुरू करने पर यूरोप के गरीबों की जिंदगी आमूल रूप से बदल गई थी। उनका भोजन बेहतर हो गया और औसत उम्र बढ़ने लगी। आयरलैण्ड के गरीब काश्तकार तो आलू पर इस हद तक निर्भर हो चुके थे कि जब 1840 के दशक के मध्य में किसी बीमारी के कारण आलू की फसल खराब हो गई तो लाखों लोग भुखमरी के कारण मौत के मुँह में चले गए।
विजय, बीमारी और व्यापार
- सोलहवीं सदी में जब यूरोपीय जहाजियों ने एशिया तक का समुद्री ढूँढ लिया और वे पश्चिमी सागर को पार करते हुए अमेरिका तक जा पहुँचे तो पूर्वदृआधुनिक विश्व बहुत छोटा सा दिखाई देने लगा। इससे पहले कई सदियों से हिंद महासागर द्वारा फलता.फूलता व्यापार होता था। यूरोपीयों के दाखिले से यह आवाजाही और बढ़ने लगी और इन प्रवाहों की दिशा यूरोप की तरफ भी मुड़ने लगी।
- सोलहवीं सदी से अमेरिका की विशाल भूमि और बेहिसाब फसलें व खनिज पदार्थ हर दिशा में जीवन का रूप.रंग बदलने लगे।
;पपपद्ध आज के पेरू और मैक्सिकों में मौजूद खानों से निकलने वाली कीमती धातुओं, खासतौर से चाँदी, ने भी यूरोप की संपदा को बढ़ाया और पश्चिम एशिया के साथ होने वाले उसके व्यापार को गति प्रदान की। सत्राहवीं सदी के आते.जाते पूरे यूरोप में दक्षिणी अमेरिका की धन.संपदा के बारे में तरह.तरह के किस्से बनने लगे थे। इन्हीं किंवदंतियों की बदौलत वहाँ के लोग एलण्डोराडो को सोने का शहर मानने लगे और उसकी खोज में बहुत सारे खोजी अभियान शुरू किए गए। - यूरोपीय सेनाएँ केवल अपनी सैनिक ताकत के दम पर नहीं जीतती थी। स्पेनिश विजेताओं के सबसे शक्तिशाली हथियारों में परंपरागत किस्म का सैनिक हथियार तो कोई था ही नहीं। यह हथियार तो चेचक जैसे कीटाणु थे जो स्पेनिश सैनिकों और अफसरों के साथ वहाँ जा पहुँचे थे। लम्बे समय से दुनिया से अलग.थलग रहने के कारण अमेरिका के लोगो के शरीर में यूरोप से आने वाली इन बीमारियों से बचने की रोग प्रतिरोधी क्षमता नहीं थी। फलस्वरूप, इस नए स्थान पर चेचक बहुत मारक साबित हुई। एक बार संक्रमण शुरू होने के बाद तो यह बीमारी पूरे महाद्वीप में फैल गई। जहाँ यूरोपीय लोग नहीं पहुँचे थे वहाँ के लोग भी इसकी चपेट में आने लगे। इसने पूरे के पूरे समुदायों को खत्म कर डाला। इस तरह घुसपैठियों की जीत का रास्ता आसान होता चला गया।
- यूरोप में गरीबीए भुखमरी, बेहिसाब भीड़, बीमारियों का बोलबाला, धार्मिक टकराव था तथा धार्मिक असंतुष्टों को कड़ा दंड दिया जाता था। इस वजह से हजारों लोग यूरोप से भागकर अमेरिका जाने लगे।
- पंद्रहवी सदी से चीन ने दूसरे देशों के साथ अपने संबंध कम करने शुरू कर दिए और वह दुनिया से अलग.थलग पड़ने लगा। चीन की घटती भूमिका और अमेरिका के बढ़ते महत्व के चलते विश्व व्यापार का केन्द्र पश्चिम की ओर खिसकने लगा। अब यूरोप ही विश्व व्यापार का सबसे बड़ा केन्द्र बन गया।
उन्नीसवीं शताब्दी :(1815-1914) Unnisvi Satabdi
- उन्नीसवीं सदी में दुनिया तेजी से बदलने लगी। आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और तकनीकी कारकों ने पूरे के पूरे समाजों की कायापलट कर दी और विदेशी संबंधों को नए ढर्रे में ढाल दिया।
- अर्थशास्त्रिायों ने अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय में तीन तरह की गतियों या श्प्रवाहोश् का उल्लेख किया है। इनमें पहला प्रवाह व्यापार का होता है जो उन्नीसवीं सदी में मुख्य रूप से वस्तुओं ;जैसे कपड़ा या गेहूँ आदिद्ध के व्यापार तक ही सीमित था। दूसरा, श्रम का प्रवाह होता है। इसमें लोग काम या रोजगार की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह जाते है। तीसरा प्रवाह पूँजी का होता है जिसे अल्प या दीर्घ अवधि के लिए दूर.दराज के इलाकों में निवेश कर दिया जाता है। ये तीनों तरह के प्रवाह एक दूसरे से जुडे़ हुऐ थे और लोगों के जीवन को प्रभावित करते थे।
विश्व अर्थव्यवस्था का उदय : Vishva Arthvyavastha ka uday
- औद्योगिक यूरोप में खाद्य उत्पादन और उपभोग के बदलते रूझानों पर विचार करें तो बेहतर होगा। सामान्य रूप से, सभी देश भोजन के मामले में आत्मनिर्भर होने का प्रयास करते रहे हैं। लेकिन उन्नीसवीं सदी के ब्रिटेन की बात अलग थी। अगर उस समय ब्रिटेन खाद्य आत्मनिर्भरता के रास्ते पर चलता तो वहाँ के लोगों का जीवनस्तर गिर जाता और सामाजिक तनाव फैलता।
- अठारहवीं सदी के आखिरी दशकों में ब्रिटेन की आबादी तेज़ी से बढ़ने लगी थी। नतीजा, देश में भोजन की माँग भी बढ़ी। जैसे.जैसे शहर फैले और उद्योग बढ़ने लगे, कृषि उत्पादो की माँग भी बढ़ने लगी। कृषि उत्पाद महंगे होने लगे। दूसरी तरफ बड़े भूस्वामियों के दबाव में सरकार ने मक्का के आयात पर भी पाबंदी लगा दी थी। जिन कानूनों के सहारे सरकार ने यह पाबंदी लागू की थी उन्हें काॅर्न लाॅ कहा जाता था। खाद्य पदार्थो की ऊँची कीमतों से परेशान उद्योगपतियों और शहरी बाशिंदो ने सरकार को मजबूर कर दिया कि वह काॅर्न लाॅ को फौरन समाप्त कर दें।
काॅर्न लाॅ के निरस्त हो जाने के बाद बहुत कम कीमत पर खाद्य पदार्थों का आयात किया जाने लगा। आयातित खाद्य पदार्थों की लागत ब्रिटेन में पैदा होने वाले खाद्य पदार्थों से भी कम थी। फलस्वरूप, ब्रिटिश किसानों की हालत बिगड़ने लगी क्योंकि वे आयातित माल की कीमत का मुकाबला नहीं कर सकते थे। विशाल भूभागों पर खेती बंद हो गई। हज़ारों लोग बेरोज़गार हो गए। गाँवों से उजड़ कर वे या तो शहरों में या दूसरे देशों में जाने लगे। - उन्नीसवीं सदी के मध्य से ब्रिटेन की औद्योगिक प्रगति काफी तेज़ रही जिससे लोगों की आय में वृद्धि हुई। इससे लोगों की जरूरते बढ़ीं। खाद्य पदार्थों का और भी ज्यादा मात्रा में आयात होने लगा। पूर्वी यूरोप, रूस, अमेरिका और आॅस्ट्रेलिया, दुनिया के हर हिस्से में ब्रिटेन का पेट भरने के लिए ज़मीनों को साफ करके खेती की जाने लगी।
- नयी जमीनों पर खेती करने के लिए यह आवश्यक था कि दूसरे इलाकों के लोग वहाँ आकर बसें। यानी नए घर बनाना और नयी बस्तियाँ बसाना भी ज़रूरी था। इन सारे कामों के लिए पूँजी और श्रम की ज़रूरत थी। इसके लिए लंदन जैसे वित्तीय केंद्रों से पूँजी आने लगी।
- उन्नीसवीं सदी में यूरोप के लगभग पाँच करोड़ लोग अमेरिका और आॅस्ट्रेलिया में जाकर बस गए। माना जाता है कि पूरी दुनिया में लगभग पंद्रह करोड़ लोग बेहतर भविष्य की चाह में अपने घर.बार छोड़कर दूर.दूर के देशों में जाकर काम करने लगे थे।
1890 तक एक वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था सामने आ चुकी थी। अब भोजन किसी आसपास के गांव या कस्बे से नहीं बल्कि हज़ारो मील दूर से आने लगा था। खाद्य पदार्थों को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने के लिए रेलवे का इस्तेमाल किया जाता था। रेल का नेटवर्क इसी काम के लिए बिछाया गया था। पानी के जहाजों से इसे दूसरे देशों में पहुँचाया जाता था। इन जहाजों पर दक्षिण यूरोप, एशिया, अफ्रीका और कैरीबियाई द्वीपसमूह के मज़दूरों से बहुत कम वेतन पर काम करवाया जाता था। बहुत छोटे पैमाने पर ही सही लेकिन इसी तरह के नाटकीय बदलाव हम अपने यहाँ पंजाब में भी देख सकते हैं। यहाँ ब्रिटिश भारतीय सरकार ने अर्द्ध.रेगिस्तानी परती जमीनों को उपजाऊ बनाने के लिए नहरों का जाल बिछा दिया ताकि निर्यात के लिए गेहूँ और कपास की खेती की जा सके। नयी नहरों की सिंचाई वाले इलाकों में पंजाब के अन्य स्थानो के लोगों को लाकर बसाया गया। उनकी बस्तियों को केनाल काॅलोनी (नहरी बस्ती) कहा जाता था - भोजन तो सिर्फ एक उदाहरण मात्रा है। कुछ ऐसी ही कहानी कपास की भी रही है जिसकी दुनिया भर में बड़े पैमाने पर खेती की जाने लगी थी ताकि ब्रिटिश कपड़ा मिलों की माँग को पूरा किया जा सके। रबड़ की कहानी भी इससे अलग नहीं है। विभिन्न चीजों के उत्पादन में विभिन्न इलाकों ने इतनी महारत हासिल कर ली थी कि 1820 से 1914 के बीच विश्व व्यापार में 25 से 40 गुना वृद्धि हो चुकी थी। इस व्यापार में लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा श्प्राथमिक उत्पादोंश् . यानी गेहूँ और कपास जैसे कृषि उत्पादों तथा कोयले जैसे खनिज पदार्थों का था।
तकनीक की भूमिका : Takniki ki Bhumika
- विश्व अर्थव्यवस्था की भूमिका: रेलवे, भाप के जहाज, टेलिग्राफ, ये सब तकनीकी बदलाव बहुत महत्वपूर्ण रहे। उनके बिना उन्नीसवीं सदी मे ंआए परिवर्तनों की कल्पना नहीं की जा सकती थी। औपनिवेशीकरण के कारण यातायात और परिवहन साधनों में भारी सुधार किए गए। तेज चलने वाली रेलगाड़ियाँ बनी, बोगियों का भार कम किया गया, जलपोतों का आकार बढ़ा जिससे किसी भी उत्पाद को खेतों से दूर-दूर के बाजारों में कम लागत पर और ज्यादा आसानी से पहुँचाया जा सके।
- माँस उत्पादों का प्रभाव रू 1870 के दशक तक अमेरिका से यूरोप को मांस का निर्यात नहीं किया जाता था। उस समय केवल जिंदा जानवर ही भेजे जाते थे जिन्हें यूरोप ले जाकर ही काटा जाता था। लेकिन जिंदा जानवर बहुत ज्यादा जगह घेरते थे। बहुत सारे तो लम्बे सफर में मर जाते थे या बीमार पड़ जाते थे। बहुतों का वजन गिर जाता था। नयी तकनीक के आने पर यह स्थिति बदल गई। पानी के जहाजों में रेफ्रिजरेशन की तकनीक स्थापित कर दी गई जिससे जल्दी खराब होने वाली चीजों को भी लंबी यात्राओं पर ले जाया जा सकता था। इसके बाद तो जानवारों को यात्रा से पहले ही मारा जाने लगा। इससे न केवल समुद्री यात्रा में आने वाला खर्चा कम हो गया बल्कि यूरोप में मांस के दाम भी गिर गए। यूरोप के गरीबों को ज्यादा विविधतापूर्ण खुराक मिलने लगी। जीवनस्थिति सुधरी तो देश में शांति स्थापित होने लगी और दूसरे देशों में साम्राज्यवादी मंसूबों को समर्थन मिलने लगा।
उन्नीसवीं सदी के आखिर में उपनिवेशवाद : Unnisvi Shadi Ke Aakhir Me Upniveshwad
- व्यापार में इजाफे़ और विश्व अर्थव्यवस्था के साथ निकटता का एक परिणाम यह हुआ कि दुनिया के बहुत सारे भागों में स्वतंत्राता और आजीविका के साधन छिनने लगें। उन्नीसवीं सदी के आखिरी दशकों में यूरोपीयों की विजयों से बहुत सारे कष्टदायक आर्थिक, सामाजिक और पारिस्थितिकीय परिवर्तन आए और औपनिवेशिक समाजों को विश्व अर्थव्यवस्था में समाहित कर लिया गया। 1885 में यूरोप के ताकतवर देशों की बर्लिन में एक बैठक हुई जिसमें अफ्रीका के नक्शें पर इसी तरह लकीरें खींचकर उसको आपस में बाँट लिया गया था।
- उन्नीसवीं सदी के आखिर में ब्रिटेन और फ्रांस ने अपने शासन वाले विदेशी क्षेत्राफल मंे भारी वृद्धि कर ली थी। बेल्जियम, जर्मनी तथा यूण्एसण् नयी औपनिवेशिक ताकतों के रूप में सामने आए।
रिंडरपेस्ट या मवेशी प्लेग
प्राचीन काल से ही अफ्रीका में जमीन की कभी कोई कमी नहीं रही जबकि वहाँ की आबादी बहुत कम थी। सदियों तक अफ्रीकियों की जिंदगी व कामकाज जमीन और पालतू पशुओं के सहारे ही चलता रहा है। वहाँ पैसे या वेतन पर काम करने का चलन नहीं था। उन्नीसवीं सदी के आखिर में यूरोपीय ताकतें अफ्रीका के विशाल भूक्षेत्रा और खनिज भंडारों को देखकर इस महाद्वीप की ओर आकर्षित हुई थी। यूरोपीय लोग अफ्रीका में बागानी खेती करने और खदानों का दोहन करना चाहते थे ताकि उन्हें वापस यूरोप भेजा जा सके। लेकिन वहाँ एक ऐसी समस्या पेश आई जिसकी उन्हें उम्मीद नहीं थी। वहाँ के लोग तनख्वाह पर काम नहीं करना चाहते थे। मजदूरों की भर्ती और उन्हें अपने पास रोके रखने के लिए मालिकों ने बहुत सारे हथकंडे आजमा कर देख लिए लेकिन बात नहीं बनी। उन पर भारी भरकम कर लाद दिए गए जिनका भुगतान केवल तभी किया जा सकता था जब करदाता बागानों या खदानों में काम करता हो। काश्तकारों को उनकी जमीन से हटाने के लिए उत्तराधिकार कानून भी बदल दिए गए। नए कानून में यह व्यवस्था कर दी गई कि अब परिवार के केवल एक ही सदस्य को पैतृक संपति मिलेगी। इस कानून के जरिए परिवार के बाकी लोगों को श्रम बाजार में ढकेलने का प्रयास किया जाने लगा।
अफ्रीका में रिंडरपेस्ट नाम की बीमारी सबसे पहले 1880 के दशक के आखिरी सालों में दिखाई दी। उस समय पूर्वी अफ्रीका में एरिट्रिया पर हमला कर रहे इतालवी सैनिकों का पेट भरने के लिए एशियाई देशों से जानवर लाए जाते थे। अफ्रीका के पूर्वी हिस्से से महाद्वीप में दाखिल होने वाली यह बीमारी ‘जंगल की आग’ की तरह पश्चिमी अफ्रीका की तरफ बढ़ने लगी। 1892 में यह अफ्री़का के अटलांटिक तट तक जा पहुँची। पाँच साल बाद यह केप ;अफ्ऱीका का धुर दक्षिणी हिस्साद्ध तक भी पहुँच गई। रिंडरपेस्ट ने अपने रास्ते में आने वाले 90 प्रतिशत मवेशियों को मौत की नंींद सुला दिया। पशुओं के खत्म हो जाने से तो अफ्ऱीकियों के रोजी-रोटी के साधन ही खत्म हो गए। औपनिवेशिक सरकारों ने बचे-खुचे पशु भी अपने कब्जे में ले लिए। बचे-खुचे पशु संसाधनों पर कब्जें से यूरोपीय उपनिवेशकारों को पूरे अफ्ऱीका को जीतने व गुलाम बना लेने का बेहतरीन मौका हाथ लग गया था।
भारत से अनुबंधित श्रमिकों का जाना : Bharat Se Anubandhit Shramiko Ka Jana
उन्नीसवीं सदी की दुनिया की दो लक्षण निम्न है .
- तेज आर्थिक वृद्धि, उच्चतर आय तथा कुछ क्षेत्रों में भारी तकनीकी प्रगति।
- बढ़ती हुई गरीबी तथा काॅलोनियों का शोषण।
भारत से अनुबंधित श्रमिकों को ले जाया जाना भी उन्नीसवीं सदी की दुनिया की विविधता को प्रतिबिंबित करता है। भारतीय अनुबंधित श्रमिकों को खास तरह के अनुबंध या एग्रीमेंट के तहत ले जाया जाता था। इन अनुबंधों में यह शर्त होती थी कि यदि मजदूर अपने मालिक के बागानों में पाँच साल काम कर लेंगे तो वे स्वदेश लौट सकते है। भारत के ज्यादातर अनुबंधित श्रमिक मौजूदा पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य भारत और तमिलनाडु के सूखे इलाकों से जाते थे।
भारतीय अनुबंधित श्रमिकों को मुख्य रूप से कैरीबियाई द्वीप समूह ;मुख्यतः त्रिनिदाद, गुयाना और सुरीनामद्ध माॅरिशस व फ़िजी ले जाया जाता था। तमिल अप्रवासी सीलोन और मलाया जाकर काम करते थे। बहुत सारे अनुबंधित श्रमिकों को असम के चाय बागानों में काम करवाने के लिए भी ले जाया जाता था। मजदूरों की भर्ती का काम मालिकों के एजेंट किया करते थे। एजेंटो को कमीशन मिलता था।
उन्नीसवीं सदी की इस अनुबंध व्यवस्था को बहुत सारे लोगों ने ‘नयी दास प्रथा’ का भी नाम दिया है। बागानों में या कार्यस्थल पर पहुँचने के बाद मजदूरों को पता चलता था कि वे जैसी उम्मीद कर रहे थे यहाँ वैसे हालात नहीं है। नयी जगह की जीवन एवं कार्य स्थितियाँ कठोर थीं और मजदूरों के पास कानूनी अधिकार कहने भर को भी नहीं थे।
मजदूरों द्वारा खोजी गई जीवंत विधियाँ – Majduro Dwara Khoji Gayi Jivant Vidhiyan
बहुतों ने अपनी पुरानी और नयी संस्कृतियों का सम्मिश्रण करते हुए व्यक्तिगत और सामूहिक आत्माभिव्यक्ति के नए रूप खोज लिए। त्रिनिदाद में मुहर्रम के सालाना जुलूस को एक विशाल उत्सवी मेले का रूप दे दिया गया। इस मेले को ‘होसे’ ;इमाम हुसैन के नाम परद्ध नाम दिया गया। उसमें सभी धर्मो व नस्लों के मजदूर हिस्सा लेते थे। इसी प्रकार रास्ताफारियानवाद ;त्ंेजंंितपंदपेउद्ध नाम विद्रोही धर्म (जिसे जमैंका के रैगे गायक बाॅब मार्ले ने ख्याति के शिखर पर पहुँचा दिया) में भी भारतीय अप्रवासियों और कैरीबियाई द्वीपसमूह के बीच इन सम्बन्धों की झलक देखी जा सकती है। त्रिनिदाद और गुयाना में मशहूर श्चटनी म्यूजिकश् भी भारतीय अप्रवासियों के वहाँ पहुँचने के बाद सामने आई रचनात्मक अभिव्यक्तियों का ही उदाहरण है। सांस्कृतिक समागम के ये स्वरूप एक नयी वैश्विक दुनिया के उदय की प्रक्रिया का अंग थे। यह ऐसी प्रक्रिया थी जिसमें अलग-अलग स्थानों की चीजें आपस में घुल-मिल जाती थीए उनकी मूल पहचान और विशिष्टताएँ गुम हो जाती थीं और बिलकुल नया रूप सामने आता था। बीसवीं सदी के शुरूआती सालों से ही हमारे राष्ट्रवादी नेताओं ने इस प्रथा का विरोध किया और इसी दबाव के कारण 1921 में इसे खत्म कर दिया गया।
विदेश में भारतीय उद्यमी – Videsh Me Bhartiya Uddami
विश्व बाजार के लिए खाद्य पदार्थ व फ़सलें उगाने के वास्ते पूँजी की आवश्यकता थी। बड़े बागानों के लिए तो बाजार और बैंको से पैसा लिया जा सकता था। क्या आपने शिकारीपूरी श्राॅफ और नट्टूकोट्टई चेट्टियार के बारे मे सुना है ? ये उन बहुत सारे बैंकरों और व्यापारियों में से थे जो मध्य एवं दक्षिण पूर्व एशिया में निर्यातोन्मुखी खेती के लिए कर्जे़ देते थे। इसके लिए वे या तो अपनी जेब से पैसा लगाते थे या यूरोपीय बैंकों से कर्जे लेते थे। उनके पास दूर.दूर तक पैसे पहुँचाने की एक व्यवस्थित पद्धति होती थी। यहाँ तक कि उन्होंने व्यावसायिक संगठनों और क्रियाकलापों के देशी स्वरूप भी विकसित कर लिए थे। अफ्ऱीका में यूरोपीय उपनिवेशकारों के पीछे-पीछे भारतीय व्यापारी और महाजन भी जा पहुँचे।
भारतीय व्यापार, उपनिवेशवाद और वैश्विक व्यवस्था
- औद्योगीकरण के बाद ब्रिटेन में भी कपास का उत्पादन बढ़ने लगा था। इसी कारण वहाँ के उद्योगपतियों ने सरकार पर दबाव डाला कि वह कपास के आयात पर रोक लगाए और स्थानीय उद्योगों की रक्षा करे। फलस्वरूप, ब्रिटेन में आयातित कपड़ों पर सीमा शुल्क थोप दिए गए। वहाँ महीन भारतीय कपास का आयात कम होने लगा।
- सीमा शुल्क की व्यवस्था के कारण ब्रिटिश बाजारों से बेदखल हो जाने के बाद भारतीय कपड़ों को दूसरे अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भी भारी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। यदि भारतीय निर्यात के आँकड़ों का अध्ययन करें तो पता चलता है कि सूती कपड़े के निर्यात में लगातार गिरावट का ही रूझान दिखाई देता है। सन् 1800 के आसपास निर्यात में सूती कपड़े का प्रतिशत 30 था जो 1815 में घट कर 15 प्रतिशत रह गया। 1870 तक तो यह अनुपात केवल 3 प्रतिशत रह गया था।
- भारतीय बाजारों में ब्रिटिश औद्योगिक उत्पादों की बाढ़ ही आ गई थी। भारत से ब्रिटेन और शेष विश्व को भेजे जाने वाले खाद्यान्न व कच्चे मालों ;कच्चा सूत, नील, अफीमद्ध के निर्यात में इजाफा हुआ। ब्रिटेन से जो माल भारत भेजा जाता था उसकी कीमत भारत से ब्रिटेन भेजे जाने वाले माल की कीमत से बहुत ज्यादा होती थी। भारत के साथ ब्रिटेन हमेशा ’व्यापार अधिशेष’ की अवस्था में रहता था। इसका मतलब है कि आपसी व्यापार में हमेशा ब्रिटेन को ही फायदा रहता था। ब्रिटेन इस मुनाफे के सहारे दूसरे देशों के साथ होने वाले व्यापारिक घाटे की भरपाई कर लेता था। बहुपक्षीय बंदोबस्त ऐसे ही काम करता है। इसमें एक देश के मुकाबले दूसरे देश को होने वाले घाटे की भरपाई किसी तीसरे देश के साथ व्यापार मे मुनाफा कमा कर की जाती है। ब्रिटेन के घाटे की भरपाई में मदद देते हुए भारत ने उन्नीसवीं सदी की विश्व अर्थव्यवस्था का रूप तय करने में एक अहम भूमिका अदा की थी।
- ब्रिटेन के व्यापार से जो अधिशेष हासिल होता था उससे तथाकथित ’होम चार्जेज’ ;देसी खर्चेद्ध का निबटारा होता था। इसके तहत ब्रितानी अफसरों और व्यापारियों द्वारा अपने घर में भेजी गई निजी रकम, भारतीय बाहरी कर्जे पर ब्याज और भारत में काम कर चुके ब्रितानी अफसरों की पेंशन शामिल थी।
महायुद्धों के बीच अर्थव्यवस्था: Mahayudho Ke Bich Arthvyavastha
पहला महायुद्ध ;1914.18द्ध मुख्य रूप से यूरोप में ही लड़ा गया। लेकिन उसके असर सारी दुनिया में महसूस किए गए। इस दौरान पूरी दुनिया में चैतरफा आर्थिक एवं राजनीतिक अस्थिरता बनी रही और अंत में मानवता एक और विनाशकारी महायुद्ध के नीचे कराहने लगी।
यु़द्धकालीन रूपांतरण : Yudhkalin Rupantran
पहला विश्वयुद्ध दो खेमों के बीच लड़ा गया था। एक पाले में मित्रा राष्ट्र यानी ब्रिटेन, फ्रांस और रूस (यू एस जुड़ने के बाद) थे तथा दूसरे पाले में केन्द्रीय शक्तियाँ यानी जर्मनी, आॅस्ट्रिया-हंगरी और आॅटोमन तुर्की थे।
- मानव सभ्यता के इतिहास में ऐसा भीषण युद्ध पहले कभी नहीं हुआ था। इस युद्ध में दुनिया के सबसे अगुआ औद्योगिक राष्ट्र एक-दूसरे से जूझ रहे थे और शत्राुओं को नेस्तनाबूद करने के लिए उनके पास बेहिसाब आधुनिक औद्योगिक शक्ति इकट्ठी हो चुकी थी।
- यह पहला आधुनिक औद्योगिक युद्ध था। इस युद्ध में मशीनगनों, टैंको, हवाई जहाजों और रासायनिक हथियारों का भयानक पैमाने पर इस्तेमाल किया गया। इस युद्ध ने मौत और विनाश की जैसी विभिषिका रची उसकी औद्योगिक युग से पहले और औद्योगिक शक्ति के बिना कल्पना नहीं की जा सकती थी। युद्ध में 90 लाख से ज्यादा लोग मारे गए और 2 करोड़ लोग घायल हुए। इस महाविनाश के कारण यूरोप मे कामकाज के लायक लोगों की संख्या बहुत कम रह गई। परिवार के सदस्य घट जाने से युद्ध के बाद परिवारों की आय भी गिर गई।
- युद्ध संबंधी सामग्री का उत्पादन करने के लिए उद्योगों का पुनर्गठन किया गया। युद्ध की जरूरतों के मद्देनजर पूरे के पूरे समाजों को बदल दिया गया। मर्द मोर्चे पर जाने लगे तो उन कामों को संभालने के लिए घर की औरतों को बाहर आना पड़ा जिन्हें अब तक केवल मर्दो का ही काम माना जाता था।
- युद्ध के कारण दुनिया की कुछ सबसे शक्तिशाली आर्थिक ताकतों के बीच आर्थिक सम्बन्ध टूट गए। अब वे देश एक-दूसरे से बदला लेने पर उतारू थे। इस युद्ध के लिए ब्रिटेन को अमेरिकी बैंकोें और अमेरिकी जनता से भारी कर्जा लेना पड़ा। फलस्वरूप, इस युद्ध ने अमेरिका को कर्जदार की बजाय कर्जदाता देश बना दिया।
युद्धोत्तर सुधार : Yudhottar Sudhar
- जिस समय ब्रिटेन युद्ध से जूझ रहा था उसी समय भारत और जापान में उद्योग विकसित होने लगे थे। युद्ध के बाद भारतीय बाजार में पहले वाली वर्चस्वशाली स्थिति प्राप्त करना ब्रिटेन के लिए बहुत मुश्किल हो गया था। अब उसे जापान से भी मुकाबला करना था, सो अलग। इसका परिणाम यह हुआ कि युद्ध खत्म होने तक ब्रिटेन भारी विदेशी कर्जांे में दब चुका था।
- युद्ध के कारण आर्थिक उछाह का माहौल पैदा हो गया था। पर जब युद्ध के कारण पैदा हुआ उछाह शांत होने लगा तो उत्पादन गिरने लगा और बेरोजगारी बढ़ने लगी। इन सारे प्रयासों से रोजगार भारी तादाद में खत्म हुए। 1921 में हर पाँच में से एक ब्रिटिश मजदूर के पास काम नहीं था। रोजगार के बारे मे बेचैनी और अनिश्चितता युद्धोतर वातावरण का अंग बन गई थी।
- बहुत सारी कृषि आधरित अर्थव्यवस्थाएँ भी संकट में थी। युद्ध के दौरान यह आपूर्ति अस्त-व्यस्त हुई तो कनाडा, अमेरिका और आॅस्ट्रेलिया में गेहूँ की पैदावार अचानक बढ़ने लगी। लेकिन जैसे ही युद्ध समाप्त हुआ पूर्वी यूरोप में गेहूँ की पैदावार सुधरने लगी और विश्व बाजारों में गेहूँ की अति के हालात पैदा हो गए। अनाज की कीमतें गिर गई, ग्रामीण आय कम हो गई और किसान गहरे कर्ज संकट में फँस गए।
बड़े पैमाने पर उत्पादन और उपभोग : Bade Paimane Par Utpadan Aur Upbhog
1920 के दशक के शुरूआती सालों से ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था तेजी से तरक्की के रास्ते पर बढ़ने लगी। 1920 के दशक की अमेरिकी अर्थव्यवस्था की एक बड़ी खासियत थी बृहत उत्पादन ;डंेे च्तवकनबजपवदद्ध का चलन।
कार निर्माता हेनरी फोर्ड वृहत उत्पादन के विख्यात प्रणेता थे। उन्होनें शिकागो के एक बूचड़खाने की असेंबली लाइन की तर्ज पर डेट्राॅयट के अपने कार कारखाने में भी आधुनिक असेंबली लाइन स्थापित की थी। शिकागो के बूचड़खाने में मरे हुए जानवरों को एक कन्वेयर बेल्ट पर रख दिया जाता था और उसके दूसरे सिरे पर खड़े मांस विक्रेता अपने हिस्से का मांस उठा कर निकलते जाते थे। यह देख कर फोर्ड को लगा कि गाड़ियों के उत्पादन के लिए भी असेंबली लाइन का तरीका समय और पैसे, दोनों के लिहाज से किफायती साबित हो सकता है। असेंबली लाइन पर मजदूरों को एक ही काम – जैसे, कार के किसी खास पुर्जे को ही लगाते रहना – मशीनी ढंग से बार-बार करते रहना होता था। काम की रफ्तार इस बात से तय होती थी कि कन्वेयर बेल्ट किस रफ्तार से चलती है। यह काम की गति बढ़ाकर प्रत्येक मजदूर की उत्पादकता बढ़ाने वाला तरीका था। कन्वेयर बेल्ट के साथ खड़े होने के बाद कोई मजदूर अपने काम में ढील करने या कुछ पल के लिए अवकाश लेने का जोखिम नहीं उठा सकता था। इसका नतीजा यह हुआ कि हेनरी फोर्ड के कारखाने की असेंबली लाइन से हर तीन मिनट में एक कार तैयार होकर निकलने लगी। इससे पहले की पद्धतियों के मुकाबले यह रफ्तार कई गुना ज्यादा थी। शुरूआत में मजदूर उसकी रफ्तार को किसी भी तरह नियंत्रित नहीं कर सकते थे। बहुत सारे मजदूरों ने काम छोड़ दिया। इस चुनौती से निपटने के लिए फोर्ड ने हताश होकर जनवरी 1914 से वेतन दोगुना यानी 5 डाॅलर प्रतिदिन कर दिया। साथ ही उन्होंने अपने कारखानों में ट्रेड यूनियन गतिविधियों पर भी पाबंदी लगा दी। तनख्वाह बढ़ाने से हेनरी फ़ोर्ड के मुनाफे में जो कमी आई थी उसकी भरपाई करने के लिए वे अपनी असेंबली लाइन की रफ्तार बार-बार बढ़ाने लगे। उनके मजदूरों पर काम का बोझ लगातार बढ़ता रहता था। बेहतर वेतन के चलते अब बहुत सारे मजदूर भी कार जैसी टिकाऊ उपभोक्त वस्तुएँ खरीद सकते थे। इसके साथ ही बहुत सारे लोग फ्रिज, वाॅशिंग मशीन, रेडियो, ग्रामोफोन प्लेयर्स आदि भी खरीदने लगे। ये सब चीजें ’हायर-परचेज़’ व्यवस्था के तहत खरीदी जाती थी।
1920 के दशक में आवास एवं निर्माण क्षेत्रा में आए उछाल से अमेरिकी संपन्नता का आधार पैदा हो चुका था। 1923 में अमेरिका शेष विश्व को पूँजी का निर्यात दोबारा करने लगा और वह दुनिया में सबसे बड़ा कर्जदाता देश बन गया। अमेरिका द्वारा आयात और पूँजी निर्यात ने यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं को भी संकट से उबरने में मदद दी। अगले छह साल में विश्व व्यापार व आय वृद्धि दर में काफी सुधार आया।
महामंदी : Mahamandi
आर्थिक महामंदी की शुरूआत 1929 से हुई और यह संकट तीस के दशक के मध्य तक बना रहा। इस दौरान दुनिया के ज्यादातर हिस्सों के उत्पादन, रोजगार, आय और व्यापार में भयानक गिरावट दर्ज की गई। कृषि क्षेत्रों और समुदायों पर इसका सबसे बुरा असर पड़ा। इस महामंदी के कई कारण थे।
- कृषि क्षेत्रा में अति उत्पादन की समस्या बनी हुई थी। कृषि उत्पादों की गिरती कीमतों के कारण स्थिति और खराब हो गई थी। कीमते गिरीं और किसानों की आय घटने लगी तो आमदनी बढ़ाने के लिए किसान उत्पादन बढ़ाने का प्रयास करने लगे ताकि कम कीमत पर ही सही लेकिन ज्यादा माल पैदा करके वे अपना आय स्तर बनाए रख सकें। फलस्वरूप, बाजार में कृषि उत्पादों की आमद और भी बढ़ गई। जाहिर है, कीमतें और नीचे चली गई। खरीदारों के अभाव में कृषि उपज पड़ी-पड़ी सड़ने लगी।
- 1920 के दशक के मध्य में बहुत सारे देशों ने अमेरिका से कर्जे लेकर अपनी निवेश संबंधी जरूरतों को पूरा किया था। लेकिन संकट का संकेत मिलते ही अमेरिकी उद्यमियों के होश उड़ गए। भले ही सब देशों में एक जैसा प्रभाव न पड़ा हो लेकिन अमेरिकी पूँजी के लौट जाने से पूरी दुनिया पर असर जरूर पड़ा। यूरोप में कई बड़े बैंक धराशायी हो गए। कई देशों की मुद्रा की कीमत बुरी तरह गिर गई। इस झटके से ब्रिटिश पाउंड भी नहीं बच पाया। लेैटिन अमेरिका और अन्य स्थानों पर कृषि एवं कच्चे मालों की कीमतें तेजी से लुढ़कने लगी। अमेरिकी सरकार इस महामंदी से अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए आयातित पदार्थों पर दो गुना सीमा शुल्क वसूल करने लगी। इस फैसले ने तो विश्व व्यापार की कमर ही तोड़ दी।
- कीमतों में कमी और मंदी की आशंका को देखते हुए अमेरिकी बैंको ने घरेलू कर्जे देना बंद कर दिया। आमदनी में गिरावट आने पर अमेरिका के बहुत सारे परिवार कर्जे चुकाने में नाकामयाब हो गए जिसके चलते उनके मकान, कार और सारी जरूरी चीजें कुर्क कर ली गई। बेरोजगारी बढ़ी तो लोग काम की तलाश में दूर-दूर तक जाने लगे। आखिरकार अमेरिकी बैंकिंग व्यवस्था भी धराशायी हो गई।
भारत और महामंदी : Bharat Aur Mahamandi
- महामंदी ने भारतीय व्यापार को फौरन प्रभावित किया। 1928 से 1934 के बीच देश के आयात-निर्यात घट कर लगभग आधे रह गए थे। जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमतें गिरने लगीं तो यहाँ भी कीमतें नीचे आ गईं।
- शहरी निवासियों के मुकाबले किसानों और काश्तकारों को ज्यादा नुकसान हुआ। सबसे बुरी मार उन काश्तकारों पर पड़ी जो विश्व बाजार के लिए उपज पैदा करते थे। जिन काश्तकारों ने दिन फिरने की उम्मीद में या बेहतर आमदनी के लिए उपज बढ़ाने के वास्ते कर्जे ले लिए थे उनकी हालत भी उपज का सही मोल न मिलने के कारण खराब थी। वे दिनोदिन और कर्ज में डूबते जा रहे थे।
- मंदी के इन्हीं सालों में भारत कीमती धातुओं, खासतौर से सोने का निर्यात करने लगा। इस निर्यात ने ब्रिटेन की आर्थिक दशा सुधारने में तो निश्चय ही मदद दी लेकिन भारतीय किसानों को कोई लाभ नहीं हुआ।
- यह मंदी शहरी भारत के लिए इतनी दुखदाई नहीं रही। कीमतें गिरते जाने के बावजूद शहरों में रहने वाले ऐसे लोगों की हालत ठीक रही जिनकी आय निश्चित थी। जैसे, शहर में रहने वाले जमींदार जिन्हें अपनी जमीन पर बँधा-बँधाया भाड़ा मिलता था, या मध्यवर्गीय वेतनभोगी कर्मचारी।
विश्व अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण : युद्धोत्तर काल: Vishwa Arthvyavastha Ka Punarnirman
दूसरा विश्व युद्ध 1939 में शुरू हुआ तथा 1945 तक लगातार चला। युद्ध के दो खेमे या गुट निम्न हैं
- एक खेमा मित्रा राष्ट्रों में ब्रिटेन, फ्रांस, रूस तथा संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल थे।
- एक गुट में धुरी शक्तियाँ (मुख्य रूप से नात्सी जर्मनी, जापान और इटली) थी।
इस युद्ध में मौत और तबाही की कोई हद बाकी नहीं बची थी। माना जाता है कि इस जंग के कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से करीब 6 करोड़ लोग मारे गए। करोड़ों लोग घायल हुए। इस युद्ध में ऐसे लोग ज्यादा मरे जो किसी मोर्चे पर लड़ नहीं रहे थे। यूरोप और एशिया के विशाल भूभाग तबाह हुए। कई शहर हवाई बमबारी या लगातार गोलाबारी के कारण मिट्टी में मिल गए। इस युद्ध ने बेहिसाब आर्थिक और सामाजिक तबाही को जन्म दिया। युद्धोत्तर काल में पुनर्निमाण का काम दो बड़े प्रभावों के साये में आगे बढ़ा। पश्चिमी विश्व में अमेरिका आर्थिक, राजनीतिक और सैनिक दृष्टि से एक वर्चस्वशाली ताकत बन चुका था। दूसरी ओर सोवियत संघ भी एक वर्चस्वशाली शक्ति के रूप में सामने आया।
युद्धोत्तर बंदोबस्त और ब्रेटन.वुड्स संस्थान : Yudhottar Bandobast Aur Britain Woods Sansthan
युद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य यह था कि औद्योगिक विश्व में आर्थिक स्थिरता एवं पूर्ण रोज़गार बनाए रखा जाए। इस फ्रेमवर्क पर जुलाई 1944 में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स नामक संस्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति बनी थी। सदस्य देशांे के विदेश व्यापार में लाभ और घाटे से निपटने के लिए ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ;आईण् एमण् एफण्द्ध की स्थापना की गई। युद्धोत्तर पुनर्निमाण के लिए पैसे का इंतजाम करने के वास्ते अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक का गठन किया गया। इसी वजह से विश्व बैंक और आईण् एमण् एफण् को ब्रेटन वुड्स संस्थान या ब्रेटन वुड्स ट्विन ;ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ संतानद्ध भी कहा जाता है। इसी आधार पर युद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था को अकसर ब्रेटन वुड्स व्यवस्था भी कहा जाता है। विश्व बैंक और आईण् एमण् एफण् ने 1947 में औपचारिक रूप से काम करना शुरू किया। इन संस्थानों की निर्णय प्रक्रिया पर पश्चिमी औद्योगिक देशों का नियंत्राण रहता है। अमेरिका विश्व बैंक और आईण् एमण् एफण् के किसी भी फै़सले को वीटो कर सकता है। ब्रेटन वुड्स व्यवस्था निश्चित विनिमय दरों पर आधारित होती थी। इस व्यवस्था में राष्ट्रीय मुदे्राएँ, जैसे भारतीय मुद्रा.रूपया.डाॅलर के साथ एक निश्चित विनिमय दर से बंधा हुआ था। एक डाॅलर के बदले में कितने रूपये देने होगें, यह स्थिर रहता था। डाॅलर का मूल्य भी सोने से बँधा हुआ था। एक डाॅलर की कीमत 35 औंस सोने के बराबर निर्धारित की गई थी।
प्रारंभिक युद्धोत्तर वर्ष : Prarambhik Yuddhottar Varsh
- ब्रेटन वुड्स व्यवस्था ने पश्चिमी औद्योगिक राष्ट्रों और जापान के लिए व्यापार तथा आय में वृद्धि के एक अप्रतिम युग का सूत्रापात किया। 1950 से 1970 के बीच विश्व व्यापार की विकास दर सालाना 8 प्रतिशत से भी ज्यादा रही। इस दौरान वैश्विक आय में लगभग 5 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही थी। विकास पर भी कमोबेश स्थिर ही थी। उसमें ज्यादा उतार.चढ़ाव नहीं आए। इस दौरान ज्यादातर समय अधिकांश औद्योगिक देशों में बेरोजगारी औसतन 5 प्रतिशत से भी कम ही रही।
- इन दशकों में तकनीक और उद्यम का विश्वव्यापी प्रसार हुआ। विकासशील देश विकसित औद्योगिक देशों के बराबर पहुँचने की जीतोड़ कोशिश कर रहे थे। इसीलिए उन्होंने आधुनिक तकनीक से चलने वाले संयंत्रों और उपकरणों के आयात पर बेहिसाब पूँजी का निवेश किया।
अनौपनिवेशीकरण और स्वतंत्राता : Anaupniveshikaran Aur Swatantrata
- अगले दो दशकों में एशिया और अफ्रीका के ज्यादातर उपनिवेश स्वतंत्रा, स्वाधीन राष्ट्र बन चुके थे। लेकिन ये सभी देश गरीबी व संसाधनों की कमी से जूझ रहे थे। इसी कारण पचास के दशक के आखिरी सालों में आकर ब्रेटन वुड्स संस्थान विकासशील देशों पर भी पहले से ज्यादा ध्यान देने लगे। विडंबना यह थी कि नवस्वाधीन के रूप में भी अपनी जनता को गरीबी और पिछड़ेपन की गर्त से बाहर निकालने के लिए उन्हें ऐसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की मद्द लेनी पड़ी जिन पर भूतपूर्व औपनिवेशिक शक्तियों का ही वर्चस्व था। अनौपनिवेशीकरण के बहुत साल बीत जाने के बाद भी बहुत सारे नवस्वाधीन राष्ट्रों की अर्थव्यवस्थाओं पर भूतपूर्व औपनिवेशिक शक्तियों का ही नियंत्राण बना हुआ था। जो देश ब्रिटेन और फ्रांस के उपनिवेश रह चुके थे या जहाँ कभी उनका राजनीतिक प्रभुत्व रह चुका वहाँ के महत्वपूर्ण संसाधनों, जैसे खनिज संपदा और जमीन पर अभी भी ब्रिटिश और फ्रांसीसी कंपनियों का ही नियंत्राण था और वे इस नियंत्राण को छोड़ने के लिए किसी भी कीमत पर तैयार नहीं थी। कई बार अमेरिका जैसे अन्य शक्तिशाली देशां की बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भी विकासशील देशों के प्राकृतिक संसाधनों का बहुत कम कीमत पर दोहन करने लगती थी।
- दूसरी और ज्यादातर विकासशील देशों को पचास और साठ के दशक में पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं की तेज प्रगति से कोई लाभ नहीं हुआ। इस समस्या को देखते हुए उन्होंने एक नयी अंतराष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली ;छमू प्दजमतदंजपवदंस म्बवदवउपब व्तकमत.छप्म्व्द्ध के लिए आवाज उठाई और समूह 77 ;जी .77द्ध के रूप में संगठित हो गए। एनण् आईण् ईण् औण् से उनका आशय एक ऐसी व्यवस्था से था जिसमें उन्हें अपने संसाधनों पर सही मायनों में नियंत्राण मिल सके, जिसमें उन्हें विकास के लिए अधिक सहायता मिले, कच्चे माल के सही दाम मिलें, और अपने तैयार मालों को विकसित देशों के बाजा़रों में बेचने के लिए बेहतर पहुँच मिलें।
ब्रेटन वुड्स का समापन और वैश्वीकरणश् की शुरूआत : Britain Woods Ka Samapan Aur Vaishvikaran Ki Shuruat
- 1960 के दशक से ही विदेशों में अपनी गतिविधियों को भारी लागत ने अमेरिका की वित्तीय और प्रतिस्पर्धी क्षमता को कमज़ोर कर दिया था। अमेरिकी डाॅलर अब दुनिया की प्रधान मुद्रा के रूप में पहले जितना सम्मानित और निर्विवाद नहीं रह गया था। सोने की तुलना में डाॅलर की कीमत गिरने लगी थी। अंततः स्थिर विनिमय दर की व्यवस्था विफल हो गई और प्रवाहमयी या अस्थिर विनिमय दर की व्यवस्था शुरू की गई।
- 1970 के दशक के मध्य से अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में भी भारी बदलाव आ चुके थे। अब तक विकासशील देश कर्ज़े और विकास संबंधी सहायता के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की शरण ले सकते थे लेकिन अब उन्हें पश्चिम के व्यावसायिक बैंको और निज़ी ऋणदाता संस्थानों से कर्ज़ न लेने के लिए बाध्य किया जाने लगा। विकासशील विश्व में समय.समय पर कर्ज़ संकट पैदा होने लगा जिसके कारण आय में गिरावट आती थी और गरीबी बढ़ने लगती थी। अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में यह समस्या सबसे ज़्यादा दिखाई दी।
- औद्योगिक विश्व भी बेरोज़गारी की समस्या में फँसने लगा था। सत्तर के दशक के मध्य से बेरोज़गारी बढ़ने लगी। नब्बे के दशक के प्रारंभिक वर्षों तक वहाँ काफी बेरोजगारी रही। सत्तर के दशक के आखिरी सालों से बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भी एशिया के ऐसे देशों में उत्पादन केंद्रित करने लगीं जहाँ वेतन कम थे।
- चीन में न यी आर्थिक नीतियों और सोवियत खेमे के बिखराव तथा पूर्वी यूरोप में सोवियत शैली की व्यवस्था समाप्त हो जाने के पश्चात् बहुत सारे देश दोबारा विश्व अर्थव्यवस्था का अंग बन गए। चीन जैसे देशों में वेतन तुलनात्मक रूप से कम थे। फलस्वरूप विश्व बाजा़रों पर अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने वहाँ जमकर निवेश करना शुरू कर दिया।
- उद्योगों को कम वेतन वाले देशों में ले जाने से वैश्विक व्यापार और पूँजी प्रवाहों पर भी असर पड़ा। भारत, चीन और ब्राज़ील आदि देशों की अर्थव्यवस्थाओं में आए भारी बदलावों के कारण दुनिया का अर्थिक भूगोल पूरी तरह बदल चुका है।
महत्त्वपूर्ण शब्दावली : Mahatvapurn Shabdawali
- वैश्विक (विश्वव्यापी) : विश्व के सभी देशों में निहित।
- वैश्वीकरण : विभिन्न राष्ट्रों में लोगों , समान तथा सेवाओं की गतिविधियों की अनुमति।
- कौड़ी : जिसका हिन्दी शाब्दिक अर्थ समुद्री शैल है इसका प्रयोग प्राचीन संसार में करेन्सी (मुद्रा) के रूप में किया जाता था ।
- रेशम मार्ग : ये ऐसे मार्ग थे जो न केवल एशिया के विशाल क्षेत्रों को परस्पर जोड़ने का काम करते थे बल्कि एशिया को यूरोप और उत्तरी अफ्रीका से भी जोड़ते थे।
- स्पैघेत्ती : इटली में लोकप्रिय नूडल्स का प्रकार।
- एल डोराडो : अधिक धन-संपदा वाली काल्पनिक भूमि (सोने की भूमि)।
- वृक्षारोपण : व्यावसायिक फसले जैसे चाय, काॅफी, कपास, तम्बाकू, गन्ना आदि की खेती करना ।
- कार्न लाॅ : जो कानून अंग्रेज सरकार को अनाज का आयात करने से प्रतिबंधित करते थे ।
- पारिस्थितिकी : जीवों का एक दूसरे से एवं उनके चारों ओर के वातावरण से संबंध का अध्ययन।
- केनाल कालोनियाँ : नयी नहरों की सिंचाई वाले इलाको में पंजाब के अन्य स्थानों के लोगों को लाकर बसाया गया। उनकी बस्तियों को केनाल काॅलोनी कहा जाता था।
- रिंडरपेस्ट (मवेशी प्लेग) : पशुओं के मध्य तेजी से फैलने वाली बीमारी।
- रास्ताफारिया : जमैका का एक संप्रदाय जिसके सदस्य चुने हुए लोगों के रूप में श्याम (Black)।
- चटनी म्यूजिक (त्रिनिदाद का लोकप्रिय संगीत) : सांस्कृतिक समागम का उदाहरण माना गया।
- उद्यमी : वह जो लाभ तथा हानि के जोखिम के साथ व्यावसायिक उद्यम करता है। अपने स्वयं के जोखिम पर उद्यम शुरू करता है।
- होसे : त्रिनिदाद में मुहर्रम का वार्षिक जुलूस एक रस्मी उत्सवी मेले में बदल गया जिसे होसे कहते हैं।
- कूली : अकुशल नवीन श्रमिक। अलग से भारतीय श्रमिक जिन्हें त्रिनिदाद में प्रायः कूली कहा जाता था।
- नील : गहरा बैंगनी नीला रंग।
- संगठन : प्रथम विश्वयुद्ध से पहले, ब्रिटेन, फ्रांस तथा रूस ने एक गुट बनाया तथा प्रथम विश्व युद्ध में साथ-साथ युद्ध लड़े। एक साथ वे संगठन के नाम से जाने जाते हैं।
- केन्द्रीय शक्ति : जर्मनी, आॅस्ट्रिया-हंगरी, इटली, आॅटोमन तुर्की प्रथम विश्वयुद्ध में एक साथ लड़े थे। ये एक साथ संगठन के नाम से जाने जाते हैं।
- अदम्य शक्ति : द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी, इटली, आॅस्ट्रिया, तुर्की अदम्य शक्ति वाले कहलाये।
- आई.एम.एफ. : अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष।
- एन.आई.ई.ओ. : नयी अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली।
Bhumandalikrit Vishva Ka Banana Prashn
अति लघुत्तरात्मक प्रश्न
- प्राचीन युग में विचारों तथा वस्तुओं के आदान प्रदान के दो प्रकार बताइए।
- काॅरी का अर्थ क्या है ? इसका प्रयोग किस उद्देश्य के लिए किया गया था?
- सिल्क रूट क्या है ? दूसरे देशों को जोड़ने में इसका क्या योगदान था?
- ई.आई. डोरडो का क्या तात्पर्य है जिसने यात्रियों को आकर्षित किया?
- दो यूरोपीयन देशों के नाम बताइए जिन्होनें सोलहवीं शताब्दी में अमेरिका को उपनिवेशित किया।
- उस खोजकत्र्ता का नाम बताइए जिसने अमेरिका जाने वाले समुद्री मार्गों की खोज की।
- 18वीं सदी के प्रथम दो सर्वाधिक अमीर देश कौनसे हैं ?
- काॅर्न लाॅ क्या है घ् इसे फौरन क्यों समाप्त करना पड़ा?
- 19वीं सदी में यूरोपीयन लोगों का अमेरिका में बसने का मुख्य कारण बताइए।
- उन कोई चार महत्वपूर्ण आविष्कारों के नाम बताइए जो 20वीं शताब्दी में हुए थे।
- उपनिवेशों के इतिहास में वर्ष 1885 क्यों महत्वपूर्ण हुआ?
- अनुबंधित श्रमिक का क्या अर्थ है?
- त्रिनिदाद का होसे उत्सव क्या है?
- कैरीबियन लोगों तथा अप्रतिबंधित भारतीयों के मध्य सामाजिक संस्कृति समागम को प्रभावित करने वाले दो उदाहरण दीजिए।
- चटनी म्यूजिक का क्या तात्पर्य है घ्
- वी.एस. नायपाॅल कौन है ? उनकीे मुख्य उपलब्धियाँ क्या है?
- उन समूहों के नाम बताइए जिसमें संसार प्रथम विश्वयुद्ध से पहले बंट गया था।
- अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशर के ब्र्रेटन वुड्स नामक संस्थान की स्थापना क्यों की गई थी?
- ब्रेटन वुड्स ट्विन्स का तात्पर्य क्या है ?
- द्वितीय विश्व युद्ध के कोई दो आर्थिक प्रथाव बताइए।
- अत्यधिक विषाद का काल कौनसा था?
- द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद कौन-कौनसे देश सर्वाधिक शक्तियों के रूप में उभरे?
- विश्व बैंक क्यों स्थापित किया गया था?
- NIEO क्या है?
- रिंडरपेस्ट को परिभाषित कीजिए।
- 1870 के दशक तक मांस खाना एक महंगा सौदा था तथा यूरोप के गरीबों के सामथ्र्य से बाहर था कारण दें ।
- उस तकनीक का नाम बताइए, जिससे जल्दी खराब होने वाली चीजों को भी लम्बी यात्राओं पर ले जाया जा सकता था।
- बाहरी लोगों के आने से पहले अधिकतर अफ्रीकी लोगों के पास आन्दोलनों को छेड़ने के बहुत छोटे कारण थे। कारण दीजिए।
- भारतीय अनुबंधित प्रवासियों के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
- ब्रेटन वुड्स के असफल होने के क्या कारण थे?
लघुत्तरात्मक प्रश्न
- सिल्क रूट व्यापार तथा सांस्कृतिक बदलाव में कैसे सहायता करते हैं ?
- सांस्कृतिक बदलाव के प्रक्रम में एक स्थान से दूसरे स्थान पर भोज्य अनुकूलन ;आदतेंद्ध कैसे आते हैं?
- अन्तर्राष्ट्रीय व्यावसायिक बदलाव में विभिन्न प्रकार के प्रवाहों तथा आन्दोलनों को पहचानिए घ् यह अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करते हैं।
- भारत के कौनसे भाग ने नई कृषि अर्थव्यवस्था का प्रथम अनुभव प्राप्त किया। यह कैसे हुआ। पंजाब की नहरी काॅलनियाँ क्या थीं?
- व्याख्या कीजिए नई तकनीक के साथ विश्व के एक भाग के लोग विश्व के दूसरे भाग से कम कीमत पर कैसे खाद्य की विभिन्न किस्मों को आयतित कर सकते हैं?
- रिंडरपेस्ट अफ्रीका कैसे पहंुँची ? यह अफ्रीकी जनता के लिए महामारी कैसे बनी?
- हैनरी फोर्ड ने 1914 में अधिकृत मजदूरों के लिए क्या कदम उठाये?
- 19वीं शताब्दी की परिस्थितियों का अवलोकन कीजिए। किस विवशता के कारण भारतीय बंधुआ मजदूर बन गये तथा काम की तलाश में दूसरे देशों में प्रवास कर गये।
- 19वीं शताब्दी के बंधुआ तंत्रा को दास प्रथा के नये तंत्रा के रूप में क्यों संबोधित किया गया?
- विदेशों में 19वीं शताब्दी के बाद सूती वस्त्रों के आयात पर आयात शुल्क क्यों लगा दिया गया?
- ब्रिटेन की भारत से व्यापार अधिशेष ने अन्य वाणिज्यिक घाटों को संतुलित करने में कैसे सहायता की ?
- प्रथम विश्व युद्ध ने यू.एस. की अर्थव्यवस्था को कैसे अन्तर्राष्ट्रीय धनी से ऋणी में रूपान्तरित कर दिया था ?
- ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर प्रथम विश्व युद्ध का क्या प्रभाव पड़ा?
- औद्योगिक उत्पादन के संदर्भ में असेम्बली लाईन विधि का क्या अर्थ है ?
- द्वितीय विश्व यु़द्ध के सबसे बड़े आर्थिक प्रभाव क्या थे?
- भर्ती करने वाले एजेंटों द्वारा अनुबंधित श्रमिकों का शोषण किस प्रकार होता था?
- अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय पद्धति तथा ब्रेटन वुड्स पद्धति के मध्य क्या अंतर है?
- IMF (अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष) तथा विश्व बैंक की सीमायें क्या थी ? कोई दो लिखिए।
- विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ चीन तथा अन्य एशियाई देशों में निवेश करने के लिए आकर्षित क्यों हुई?
- G-77 क्या है?
- ऐसी दो विश्व संस्थाओं के नाम बताइए जो ब्र्रेटन-वुड्स के अन्तर्गत स्थापित थी। उनके एक-एक उद्देश्य का वर्णन करें।
- धुनिक युग से पूर्व का संसार 16 वीं सदी में तेजी से सिकुड़ता गया क्यों?
- 19वीं सदी के आखिर में यूरोपीय ताकतें अफ्रीका की ओर क्यों आकर्षित हुई?
- 19वीं सदी के अर्थशास्त्रिायों ने अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय में तीन तरह की गतियों या प्रवाहों का उल्लेख किया है उनका वर्णन करें।
- अफ्रीकी मजदूरों को प्रशिक्षित करने तथा कब्जे में रखने के लिए यूरोपीय मालिक क्या ढंग अपनाते थे ?
दीर्घउत्तरात्मक प्रश्न
- व्याख्या कीजिए कि कैसे परिवहन और व्यापार विभिन्न देशों के बीच संबंध स्थापित करने में सहायता करते हैं।
- 1890 तक वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था ने आकार ग्रहण कर लिया था। इसकी मुख्य विशेषताऐं लिखिए।
- विश्व के विभिन्न भागों में व्यापार का विस्तार तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ निकट संबंधों ने भी स्वतंत्राता तथा आजीविका की कमी की। दिये गये उदाहरण का मूल्यांकन कीजिए।
- दो महायुद्धों के बीच मिले आर्थिक अनुभवों से अर्थशास्त्रिायों तथा राजनीतिज्ञों ने दो मुख्य पाठ पढ़े। स्पष्ट कीजिए?
- महामंदी क्या है? इसके किन्हीं कारणों को लिखिए।
- भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामंदी के क्या प्रभाव पड़े?
- पिछली युद्ध अर्थव्यवस्था की पुर्नस्थापना ब्रिटेन की परेशानियों को कैसे प्रमाणित करती है ? व्याख्या कीजिए।
- ब्रिटेन में औद्योगीकरण का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?
- ब्रिटिशों के लिए भारतीय व्यापार का क्या महत्व था?
- समूह 77 के देशों ने एक नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली की माँग क्यों उठाई ? व्याख्या करें।
- कृषि अर्थव्यवस्था पर प्रथम विश्व युद्ध के प्रभावों का वर्णन करें।
- ‘पहला विश्व युद्ध आधुनिक औद्योगिक युद्ध था’ व्याख्या करें।
- ‘खाद्य पदार्थ दूर देशों के बीच सांस्कृतिक विनिमय के कई उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। इस कथन को स्पष्ट करें।
- सिल्क रूट का क्या महत्व था?
- अमेरिका में उपनिवेशवाद के लिए पुर्तगालियों और स्पेनिशों ने कीटाणुओं को एक अस्त्रा के रूप में कैसे प्रयुक्त किया था?
- काॅर्न लाॅ के कानून भंग करने के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- अफ्रीकी लोगों पर रीडरपेस्ट या पशु प्लेग के फैलने का क्या प्रभाव पड़ा ? स्पष्ट कीजिए।
- ब्रेटन वुड्स अनुबंध का क्या अर्थ है?
- ब्रेटन वुड्स व्यवस्था का क्या प्रभाव पड़ा?
- 19वीं सदी में विश्व भर में 15 करोड़ से भी अधिक लोग एक देश से दूसरे देश में प्रवास कर गए। इस अप्रवास के लिए उत्तरदायी घटकों का वर्णन कीजिए।
बहुविकल्पी प्रश्न
अमेरिका महाद्वीप की खोज किसने की?
(A) बलबोआ
(B) कोपरनिकस
(C) क्रिस्टोफर कोलम्बस
(D) फर्डीनेण्ड मैग्लन
Answer : (C)
निम्न में से कौनसे देश ने प्रथम विश्वयुद्ध में भाग नहीं लिया?
(A) फ्राँस
(B) जर्मनी
(C) पुर्तगाल
(D) इंग्लैण्ड
Answer : (C)
महामंदी किस देश में शुरू हुई?
(A) फ्रांस
(B) ब्रिटेन
(C) जर्मनी
(D) यू. एस. ए.
Answer : (D)
महामंदी किस वर्ष शुरू हुई?
(A) 1929
(B) 1981
(C) 1936
(D) 1928
Answer : (A)
आॅटोमोबाईल उत्पादन की असेम्बली लाईन की अवधारणा को किसने प्रतिपादित किया?
(A) हेनरी फोर्ड
(B) टी.कूपले
(C) वी. एस. नायपाॅल
(D) सेम्युल मोर्स
Answer : (A)
उन दो यूरोपीयन देशों का नाम लिखिए जिन्होने 16 वीं सदी के मध्य अमेरिका का उपनिवेशन किया .
(A) फ्रांस एवं इटली
(B) बेल्जीयम एवं जर्मनी
(C) यू. के. एवं जापान
(D) यू. के. एवं फ्रांस
Answer : (B)
किस देश में 1890 के दशक में मवेशी प्लेग नामक बिमारी बहुत तेजी से फैल गई?
(A) अमेरिका
(B) यूरोप
(C) एशिया
(D) अफ्रीका
Answer : (D)
खाद्य पदार्थ की जानकारी होने पर यूरोप के गरीब लोगों ने अच्छा खाना तथा जीवनयापन करना शुरू कर दिया। उस खाद्य का नाम लिखिए.
(A) चावल
(B) गेहूँ
(C) आलू
(D) टमाटर
Answer : (C)
अनुबंधित श्रमिक प्रवास की प्रणाली कब समाप्त की गई?
(A) 1920
(B) 1921
(C) 1922
(D) 1923
Answer : (B)
विश्व के शेष भागों से आयात करने वाले देशों पर लगने वाला कर कहलाता है .
(A) द्विमत
(B) आयकर
(C) आयात शुल्क
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer : (C)
यूरोप व उत्तरी अफ्रीका से जुड़ा एशिया तथा एशिया का विस्तृत क्षेत्रा किस मार्ग से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। .
(A) गोल्डन रूट
(B) सिल्क रूट
(C) डायमण्ड रूट
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
Answer : (B)
निम्न में से कौन पूर्व आधुनिक युग में सिल्क मार्ग से नहीं गुजरते थे?
(A) इसाई मिशनरियाँ
(B) व्यापार
(C) पर्यटक
(D) मुस्लिम संप्रदाय
Answer : (C)
स्पेन द्वारा अमेरिका को जीतने में किस शक्तिशाली अस्त्रा का प्रयोग किया गया था?
(A) जल सेना
(B) मिलिटरी
(C) कीटाणु
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
Answer : (C)
रिन्डरपेस्ट क्या है?
(A) व्यक्ति
(B) रोग
(C) स्थान
(D) स्मारक
Answer : (B)
निम्न में से कौनसा रोग अमेरिका के लोगों के लिए जानलेवा साबित हुआ?
(A) हैजा
(B) छोटी माता
(C) प्लेग
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
Answer : (C)
18वीं शताब्दी तक कौन से दो देश विश्व के सबसे सम्पन्न देश थे?
(A) अमेरिका तथा स्पेन
(B) भारत तथा चीन
(C) भारत तथा जापान
(D) जापान तथा चीन
Answer : (D)
19वीं शताब्दी के अर्थशास्त्रिायों ने तीन प्रकार के आंदोलनों की पहचान की तथा उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय व्यावसायिक बदलाव के साथ प्रवाहित कियाष् निम्न में से कौनसा प्रवाह का भाग नहीं है?
(A) व्यापार का प्रवाह
(B) तकनीकी का प्रवाह
(C) श्रम का प्रवाह
(D) पँूजी का प्रवाह
Answer : (B)
उस कानून का नाम बताइए जिसमें ब्रिटिश सरकार ने काॅर्न के आयात को प्रतिबंधित किया.
(A) काॅर्न अधिनियम
(B) खाद्य अधिनियम
(C) काॅर्न कानून
(D) आयात कानून
Answer : (C)
काॅर्न लाॅ के संदर्भ में निम्न में से कौनसा असत्य है?
(A) यह लाॅ 18 वीं सदी के अन्त में समाप्त कर दिया गया था।
(B) काॅर्न कानून से छुटकारे के बाद ब्रिटेन में आयातित खाद्य पदार्थ अधिक सस्ते हो गए।
(C) काॅर्न लाॅ की समाप्ति ने ब्रिटेन में कृषि को प्रोत्साहित किया।
(D) काॅर्न लाॅ की समाप्ति ने लोगों के प्रवास को बढ़ाया।
Answer : (C)
निम्न में से कौनसा देश 19 वीं सदी के मध्य में ब्रिटेन को खाद्यान्न का निर्यात नहीं करता था?
(A) रूस
(B) अमेरिका
(C) आस्ट्रेलिया
(D) भारत
Answer : (D)
निम्न में से कौनसा साधन 19 वीं सदी के दौरान माँस को लम्बी दूरी तक ले जाने में सक्षम था?
(A) वायु मार्ग
(B) शीत जहाज
(C) रेलमार्ग
(D) जलमार्ग
Answer : (B)
उस बीमारी का नाम बताइए जिसने 1890 के दशक में अफ्रीका के लोगों की आजीविका तथा स्थानीय अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाला?
(A) रिन्डरपेस्ट
(B) छोटी माता
(C) हैजा
(D) प्लेग
Answer : (A)
निम्न में से कौनसा तरीका यूरोपीय लोग अफ्रीकन श्रमिकों को भर्ती करने व दास बनाने में उपयोग करते थे ?
- भारी कर लादकर
- पैतृक नियमों को बदलकर
- खान श्रमिकों को समझौते में प्रतिबंधित कर
- उन्हें अधिक वेतन देकर
(A) केवल 1 तथा 2
(B) केवल 1, 2 तथा 3
(C) केवल 4तथा 2
(D) उपरोक्त सभी
Answer : (B)
ठेके के अन्तर्गत एक विशिष्ट समय सीमा में एक नियोक्ता के लिए प्रतिबंधित मजदूरी का कार्य है
(A) दैनिक मजदूरी
(B) बंधुआ मजदूरी
(C) अनुबंधित मजदूरी
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
Answer : (C)
निम्न में से कौनसा भारतीय अनुबंधित प्रवास का स्थान नही था ?
(A) जापान
(B) कैरीबियन द्वीप
(C) माॅरीशस
(D) फिजी
Answer : (A)
प्रथम विश्व युद्ध कब लड़ा गया था ?
(A) 1910-1914
(B) 1914-1918
(C) 1918-1922
(D) 1922-1926
Answer : (B)
निम्न में से कौनसे वेस्ट इंडीज क्रिकेटर ने भारत से अनुबंधित श्रमिक प्रवास के रूप में अपने मूल को तलाशा?
(A) विवियन रिचर्डस तथा गैरी सोबर्स
(B) क्रिस गैल तथा डेवन ब्रावा
(C) रामनरेश श्रवन तथा शिवनारायण चन्द्रपाॅल
(D) ब्रायन लारा तथा काॅर्टसनी वाॅल्श
Answer : (C)
निम्न में से किसको संघ शक्ति के रूप में जाना जाता है?
(A) ब्रिटेन, फ्रांस और रूस
(B) जर्मनी, आॅस्ट्रिया . हंगरी तथा आॅटोमन तुर्क
(C) जापान, फ्रांस और जर्मनी
(D) ब्रिटेन, जापान और रूस
Answer : (A)
अच्छी कीमत कटौती निर्णय किसने बनाया घ्
(A) हेनरी फोर्ड
(B) जेम्स वाॅट
(C) जेम्स फोर्ड
(D) हेनरी हेराॅल्ड
Answer : (A)
निम्न में से कौनसे देश प्रथम विश्व युद्ध के दौरान केन्द्रीय शक्ति की ओर नहीं थे?
(A) तुर्की
(B) आस्ट्रिया.हंगरी
(C) रूस
(D) जर्मनी
Answer : (C)