अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है – अलम + कार। अलंकार का शाब्दिक अर्थ है ‘आभूषण‘| जिस प्रकार आभूषण से शरीर की शोभा बढती है उसी प्रकार अलंकार काव्य की शोभा बढ़ाते है |
काव्य के शोभाकारक धर्म (गुण) अलंकार कहलाते है |
जो शब्द काव्य की शोभा को बढ़ाते हैं उसे अलंकार कहते हैं।
हिन्दी के कवि केशवदास एक अलंकारवादी कवि है |
Table of Contents
अलंकार के प्रकार
अलंकार तीन प्रकार के होते हैं |
१. शब्दालंकार
२. अर्थालंकार
३. आधुनिक अलंकार
शब्दालंकार
वे अलंकार जो शब्दों पर आश्रित होते है शब्दालंकार कहलाते है | शब्दालंकार छह प्रकार के होते है
- अनुप्रास अलंकार
- यमक अलंकार
- पुनरुक्ति अलंकार
- विप्सा अलंकार
- वक्रोक्ति अलंकार
- श्लेष अलंकार
अनुप्रास अलंकार
जब व्यंजन वर्णो की आवृत्ति एक से अधिक बार होती है तो वह अनुप्रास अलंकार कहलाता है |
उदाहरण: बंँदउँ गुरु पद पदुम परागा | सुरचि सुबास सरस अनुरागा|
यहाँ पर प, द , स , र की आवृति हुई है |
यमक अलंकार
जिस प्रकार अनुप्रास अलंकार में किसी एक वर्ण की आवृति होती है उसी प्रकार यमक अलंकार में किसी काव्य का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए एक शब्द की बार-बार आवृति होती है। प्रयोग किए गए शब्द का अर्थ हर बार अलग होता है। ऐसे वाक्य को यमक अलंकार कहते है।
उदाहरण : काली घटा का घमंड घटा।
ऊपर दिए गए वाक्य में आप देख सकते हैं की ‘घटा’ शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है। पहली बार ‘घटा’ शब्द का प्रयोग बादलों के काले रंग की और संकेत कर रहा है।
दूसरी बार ‘घटा’ शब्द बादलों के कम होने का वर्णन कर रहा है। अतः ‘घटा’ शब्द का दो बार प्रयोग और भिन्नार्थ के कारण उक्त पंक्तियों में यमक अलंकार की छटा दिखती है।
पुनरुक्ति अलंकार
जिस वाक्य में एक शब्द की आवृति बार – बार होती है परन्तु उनका अर्थ नहीं बदलता है उसे ही पुनुरुक्ति अलंकार कहते हैं |
उदाहरण :
विहग-विहग
फिर चहक उठे ये पुंज-पुंज
कल- कूजित कर उर का निकुंज
चिर सुभग-सुभग।
विप्सा अलंकार
आदर, घृणा, हर्ष, शोक, विस्मयादिबोधक भावों को प्रभावशाली रूप से व्यक्त करने के लिए शब्दों की पुनरावृत्ति को वीप्सा अलंकार कहते हैं।
उदाहरण : मधुर – मधुर मेरे जल |
मधुर-मधुर की आवृत्ति में वीप्सा अलंकार है ।
वक्रोक्ति अलंकार
‘वक्रोक्ति’ का अर्थ है ‘वक्र उक्ति’ अर्थात ‘टेढ़ी उक्ति’। कहनेवाले का अर्थ कुछ होता है, किन्तु सुननेवाला उससे कुछ दूसरा ही अभिप्राय निकाल लेता है। जिस शब्द से कहने वाले व्यक्ति के कथन का अभिप्रेत अर्थ ग्रहण न कर श्रोता अन्य ही कल्पित या चमत्कारपूर्ण अर्थ लगाये और उसका उत्तर दे, उसे वक्रोक्ति कहते हैं।
उदाहरण :
एक कह्यौ ‘वर देत भव, भाव चाहिए चित्त’।
सुनि कह कोउ ‘भोले भवहिं भाव चाहिए ? मित्त’ ।।
किसी ने कहा-भव (शिव) वर देते हैं; पर चित्त में भाव होना चाहिये।
यह सुन कर दूसरे ने कहा- अरे मित्र, भोले भव के लिए ‘भाव चाहिये’ ?
अर्थात शिव इतने भोले हैं कि उनके रिझाने के लिए ‘भाव’ की भी आवश्यकता नहीं।
शलेष अलंकार
श्लेष का अर्थ होता है चिपका हुआ या मिला हुआ। जब एक ही शब्द से हमें विभिन्न अर्थ मिलते हों तो उस समय श्लेष अलंकार होता है। यानी जब किसी शब्द का प्रयोग एक बार ही किया जाता है लेकिन उससे अर्थ कई निकलते हैं तो वह श्लेष अलंकार कहलाता है।
उदाहरण :
रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।।
इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है :
- पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए।
- पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है. रहीम कहते हैं कि चमक के बिना मोती का कोई मूल्य नहीं ।
- पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है। अतः यह उदाहरण श्लेष के अंतर्गत आएगा ।
अर्थालंकार
जिस अलंकार में अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार उत्पन्न होता है, वहाँ अर्थालंकार होता है। इसके प्रमुख भेद निम्नलिखित हैं।
- उपमा अलंकार
- रूपक अलंकार
- उत्प्रेक्षा अलंकार
- अतिश्योक्ति अलंकार
- मानवीकरण अलंकार
- विभावना अलंकार
उपमा अलंकार
जब किन्ही दो वस्तुओं के गुण, आकृति, स्वभाव आदि में समानता दिखाई जाए या दो भिन्न वस्तुओं कि तुलना कि जाए, तब वहां उपमा अलंकर होता है। उपमा अलंकार में एक वस्तु या प्राणी कि तुलना दूसरी प्रसिद्ध वस्तु के साथ कि जाती है।
उदाहरण : हरि पद कोमल कमल।
ऊपर दिए गए उदाहरण में हरि के पैरों कि तुलना कमल के फूल से की गयी है। यहाँ पर हरि के चरणों को कमल के फूल के सामान कोमल बताया गया है। यहाँ उपमान एवं उपमेय में कोई साधारण धर्म होने की वजह से तुलना की जा रही है अतः यह उदाहरण उपमा अलंकार के अंतर्गत आएगा।
रूपक अलंकार
रूपक साहित्य में एक प्रकार का अर्थालंकार है(इसमें अर्थ करने पर रूपी शब्द का प्रयोग होता है) जिसमें बहुत अधिक साम्य के आधार पर प्रस्तुत में अप्रस्तुत का आरोप करके अर्थात् उपमेय या उपमान के साधर्म्य का आरोप करके और दोंनों भेदों का अभाव दिखाते हुए उपमेय या उपमान के रूप में ही वर्णन किया जाता है।
उदाहरण : पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
ऊपर दिए गए उदाहरण में राम रतन को ही धन बता दिया गया है। ‘राम रतन’ – उपमेय पर ‘धन’ – उपमान का आरोप है एवं दोनों में अभिन्नता है।यहां आप देख सकते हैं की उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जा रही है। हम जानते हैं की जब अभिन्नता दर्शायी जाती ही तब वहां रूपक अलंकार होता है।
उत्प्रेक्षा अलंकार
जब समानता होने के कारण उपमेय में उपमान के होने कि कल्पना की जाए या संभावना हो तब वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यदि पंक्ति में -मनु, जनु, जनहु, जानो, मानहु मानो, निश्चय, ईव, ज्यों आदि आता है वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उदाहरण : सिर फट गया उसका वहीं। मानो अरुण रंग का घड़ा हो।
दिए गए उदाहरण में सिर कि लाल रंग का घड़ा होने कि कल्पना की जा रही है। यहाँ सिर – उपमेय है एवं लाल रंग का घड़ा – उपमान है। उपमेय में उपमान के होने कि कल्पना कि जा रही है। अतएव यह उदाहरण उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतर्गत आएगा।
अतिश्योक्ति अलंकार
जब किसी वस्तु, व्यक्ति आदि का वर्णन बहुत बाधा चढ़ा कर किया जाए तब वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है। इस अलंकार में नामुमकिन तथ्य बोले जाते हैं।
उदाहरण : हनुमान की पूंछ में लगन न पाई आग, लंका सिगरी जल गई गए निशाचर भाग।
ऊपर दिए गए उदाहरण में कहा गया है कि अभी हनुमान की पूंछ में आग लगने से पहले ही पूरी लंका जलकर राख हो गयी और सारे राक्षस भाग खड़े हुए। यह बात बिलकुल असंभव है एवं लोक सीमा से बढ़ाकर वर्णन किया गया है। अतः यह उदाहरण अतिशयोक्ति अलंकार के अंतर्गत आएगा।
मानवीकरण अलंकार
जब प्राकृतिक वस्तुओं जैसे पेड़,पौधे बादल आदि में मानवीय भावनाओं का वर्णन हो यानी निर्जीव चीज़ों में सजीव होना दर्शाया जाए तब वहां मानवीकरण अलंकार आता है।
उदाहरण : फूल हँसे कलियाँ मुसकाई।
जैसा कि ऊपर दिए गए उदाहरण में दिया गया है की फूल हंस रहे हैं एवं कलियाँ मुस्कुरा रही हैं। जैसा की हम जानते हैं की हंसने एवं मुस्कुराने की क्रियाएं केवल मनुष्य ही कर सकते हैं प्राकृतिक चीज़ें नहीं। ये असलियत में संभव नहीं है एवं हम यह भी जानते हैं की जब सजीव भावनाओं का वर्णन चीज़ों में किया जाता है तब यह मानवीकरण अलंकार होता है।
विभावना अलंकार
जहाँ कारण के न होते हुए भी कार्य का होना पाया जाता है, वहाँ विभावना अलंकार होता है।
उदाहरण :
बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु वाणी वक्ता बड़ जोगी।
वह (भगवान) बिना पैरों के चलता है और बिना कानों के सुनता है। कारण के अभाव में कार्य होने से यहां विभावना अलंकार है।
आधुनिक अलंकार
आधुनिक काल में पाश्चात्य साहित्य से आये अलंकार है | इसके तीन प्रकार है
- मानवीकरण
- ध्वन्यर्थ व्यंजना
- विशेषण विपर्यय